हैहय क्षत्रिय कलचुरी
क्षत्रिय अपनी वीरता और साहस के लिए जाने जाते थे और इस वर्ण में वैसे ही लोग होते थे जो सैन्य कुशलता में प्रवीण और शासक प्रवृति के होते थे। अतः युद्ध और सुरक्षा की जिम्मेदारी का निर्वाहन करने वाला वर्ण क्षत्रिय कहलाता था। इतिहास और साहित्य में कई क्षत्रिय राजाओं का वर्णन हुआ है जिनमे अयोध्या के राजा श्री राम, कृष्ण, सहस्त्रबाहु , तालजंघ, पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप आदि प्रमुख हैं। क्षत्रियों के वंशज वर्तमान में राजपूत के रूप में जाने जाते हैं। राजपूत अपने स्वाभिमान, वीरता, त्याग और बलिदान के लिए जाने जाते थे। अदम्य साहस और देशभक्ति उनमे कूट कूट कर भरी होती थी। राजपूत राजपुत्र का ही अपभ्रंश माना जाता है और इनमे राजाओं के पुत्र, सगे सम्बन्धी और अन्य राज्य परिवार के लोग होते थे। चूँकि राजपूत शासक वर्ग से सम्बन्ध रखते थे अतः इनमे मुख्य रूप से क्षत्रिय जाति के लोग होते थे। हर्षवर्धन के उपरांत 12 वीं शताब्दी तक का समय राजपूत काल के रूप में जाना जाता है। इस समय तक उत्तर भारत में राजपूतों के 36 कुल प्रसिद्ध हो चुके थे। इनमे चौहान, प्रतिहार, परमार, चालुक्य, सोलंकी, राठौर, गहलौत, सिसोदिया, कछवाहा, तोमर , कलचुरी आदि प्रमुख थे। क्षत्रियों का एक नाम जिसे राजपूत कहा गया संस्कृत भाषा के रजपुत्र से लिया गया है जिसका मतलब होता है की राजा का पुत्र या उनके वंश धर , क्षत्रिय राजपूतों का इतिहास उनके शौर्य एवं बलिदान के लिए जाना जाता है , क्षत्रिय राजपूतो ने सयुंक्त प्रदेश ,चेदी प्रदेश मध्य भारत , छत्तीसगढ़ और अन्य राज्यों जैसे की मगध आदि जो की वर्तमान में पाकिस्तान में है एवं कंधार जैसे राज्य जो की अफगानिस्तान में है में शासन कल्चुरी राजवंश प्राचीनतम राजवंशों में से एक है इनका प्राचीन स्थान महिष्मति और बाद में त्रिपुरी वर्तमान में तेवर है । इसी त्रिपुरी राजवंश के एक लहुरी शाखा ने कालांतर में छत्तीसगढ़ में राज्य स्थापित किया था। कलचुरी वंश छत्तीसगढ़ के इतिहास का स्वर्ण काल कहते हैं। इस वंश के राजाओ ने छत्तीसगढ़ के रजनीतिक , सामाजिक और संस्कृति को पोषित और उन्नत किया है। कलचुरियों के छत्तीसगढ़ में लगभग नौ सदियों तक राज किया। कलचुरियों (हैहय) वंश के राजपूतो ने भारत के अलग-अलग स्थानों पर शासन किया। कलचुरियों के कई शाखाये थी जिसमे छत्तीसगढ़ में रतनपुर और रायपुर की शाखाएं स्थापित हुई।
- त्रिपुरी के कलचुरी
- रतनपुर शाखा
- रायपुर शाखा
- लहुरी शाखा
कृतवर्मा , कृतग्नि, और कुतौजा था , कृतवीर्य के पुत्र हुए कार्तवीर्यअर्जुन जो की सहस्त्रबाहु व सहस्त्रार्जुन के नाम से प्रसिद्द हुए l सहस्त्रबाहु के पांच पुत्र हुए जिनके नाम थे जयध्वज , शूरसेन , शूर , वृषण,मधु , जयध्वज ने अवंतिका में महाकाल की स्थापना की और शासन किया , सहस्त्रबाहु के पुत्र हुए वीतिहोत्र,तुंडिकेय, भोज और अवन्ती , वीतिहोत्र के दो पुत्र हुए मधु और अनंत , अनंत से दुर्जय , दुर्जय से सुप्रतीक , सुप्रतीक के बाद सिन्धुदेव जिन्हें विष्णु देव के नाम से भी जाना जाता है , विष्णु देव की पीढी में सरीश्रप, शरीश्रप से सुषेण, सुषेण से सुकर्म , सुकर्म से कीर्ति , कीर्ति से कौपंसें , कौपंसें से सुदुम्न , सुद्युम्न को इन्दुनील के नाम से प्रसिद्द हुए , इन्दुनील के चार पुत्र हुए नीलध्वज, हंस ध्वज , मयूर ध्वज , नील ध्वज के पुत्र हुए प्रवीर , प्रवीर की पीढ़ी में ईश्वरदास हुए , ईश्वरदास के पुत्र हुए महाराजा सुबंधु (सन 415 -16 ई०) , महाराजा सुबंधु के पुत्र हुए काकवर्ण (सन 509 ई०), काकवर्ण के पुत्र हुए महाराजा कृष्णराज (सन 550-575 ई०) , यहाँ से कलचुरी वंश की स्थापना महाराजा कृष्णराज के द्वारा की गई l
क्षत्रियों के 36 कुलों का विवरण
डाo इन्द्रदेव नारायण सिंह रचित क्षत्रिय वंश भास्कर के अनुसार - 1- सूर्यवंश, 2- चन्द्रवंश, 3- यदुवंश, 4- गहलौत, 5- तोमर, 6- परमार, 7- चौहान, 8- राठौर, 9- कछवाहा, 10- सोलंकी, 11- परिहार, 12- निकुम्भ, 13- हैहय, 14- चन्देल, 15- तक्षक, 16- निमिवंशी, 17- मौर्यवंशी, 18- गोरखा, 19- श्रीनेत, 20- द्रहयुवंशी, 21- भाठी, 22- जाड़ेजा, 23- बघेल, 24- चाबड़ा, 25- गहरवार, 26- डोडा, 27- गौड़, 28- बैस, 29- विसैन, 30- गौतम, 31- सेंगर, 32- दीक्षित, 33- झाला, 34- गोहिल, 35- काबा, 36- लोहथम्भ।
चन्द्रवरदायी के अनुसार राजवंश - 1- सूर्यवंश, 2- सोमवंशी, 3- राठौर, 4- अनंग, 5- अर्भाट, 6- कक्कुत्स्थ, 7- कवि, 8- कमाय, 9- कलिचूरक, 10- कोटपाल, 11- गोहिल, 12- गोहिल पुत्र, 13- गौड़, 14- चावोत्कर, 15- चालुक्य, 16- चौहान, 17- छिन्दक, 18- दांक, 19- दधिकर, 20-देवला, 21- दोयमत, 22- धन्यपालक, 23- निकुम्भ, 24- पड़िहार, 25- परमार, 26- पोतक, 27- मकवाना, 28- यदु, 29- राज्यपालक, 30- सदावर, 31- सिकरवार, 32- सिन्धु, 33- सिलारु, 34- हरितट, 35- हूण, 36- कारद्वपाल। 4. मतिराम कृति वंशावली - 1- सूर्यवंश, 2- पैलवार, 3- राठौर, 4- लोहथम्भ, 5- रघुवंशी, 6- कछवाहा, 7- सिरमौर, 8- गोहलौत, 9- बघेल, 10- कावा, 11- सिरनेत, 12- निकुम्भ, 13- कौशिक, 14- चंदेल, 15- यदुवंश, 16- भाटी, 17-तोमर, 18- बनाफर, 19- काकन, 20- बंशं, 21- गहरबार, 22- करमबार, 23- रैकवार, 24- चन्द्रवंश, 25- सिकरवार, 26- गौड़, 27- दीक्षित, 28- बड़बलिया, 29-विसेन, 30- गौतम, 31- सेंगर, 32- हैहय, 33- चौहान, 34- परिहार, 35- परमार, 36- सोलंकी।
कलचुरी,कलार कलाल कलवार क्षत्रियों के कुल देवी ,गोत्र प्रवर अन्य जानकारी
कलचुरी , कलार, कलाल , कलवार जाति का गोत्र आदि
- गोत्र : काश्यप
- प्रवर : काश्यप,बत्सार, नैध्रवः
- वेद: सामवेद
- शाखा : कौथुमी
- सूत्र : गोभिल, गृह्यसूत्र
- कुलदेवी : विन्ध्यवासिनीं
- कुलदेवता : दत्तात्रेय
हैहय वंश का गोत्र आदि
- गोत्र : कृष्णात्रेय ,काश्यप , शांडिल्य
- प्रवर टीन : कृष्णात्रेय , आत्रेय , व्यास
- वेड : यजुर्वेद
- शाखा : वाजसनेयी
- सूत्र : गृह्यसूत्र , पारस्कर
- कुलदेवी : दुर्गा
- कुलदेवता : भगवान् शिव , दत्तात्रेय
- नदी : नर्मदा
- शस्त्र : कटार
- वाहन : नीला घोडा
कलचुरी वंश : कलचुरी वंश इतिहास में छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के इतिहास का स्वर्णिम काल कहा जाता है , लगभग बारह सौ सालों का लंबा शासन काल कलचुरी वंश का गौरव है l कलचुरी वंश में मुख्य रूप से दो शाखाएं हुई है जिनसे से एक महिष्मति शाखा के नाम से और दूसरी त्रिपुरी शाखा के नाम से प्रसिद्द हुई l कलचुरी हैहय वंश की शाखा मानी जाती है क्युकी प्राप्त शिलालेखों और अन्य गैजेटेड दस्तावेजों में इसके प्रमाण उपलब्ध है , कलचुरी क्षत्रिय मुख्य रूप से मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ , उत्तरप्रदेश में और ने जगहों पर भी यत्र तत्र पाए जाते है .