हैहय क्षत्रिय वंश वंशावली

हैहय क्षत्रिय या कलचुरी क्षत्रिय चंद्रवंशी क्षत्रिय है l चन्द्र वा तारा से बुध हुए , बुध व इला के महाप्रतापी पुरुरवा हुए , पुरुरवा व उर्वसी से छह पुत्र आयु,श्रुतायु, रय, विजय एवं जय हुए , आयु व प्रभा से पांच पुत्र नहुष,क्षत्रव्रद्ध,रंभ,रजि व अनेना हुए , नहुष व वीर प्रशु के सात पुत्र ययाति,संयति,अयाति, वियति,कृति व पार्श्वक का जन्म हुआ, इनमे से ययाति महाप्रती सम्राट थे जिनके दो पत्नियाँ थी जिनके पांच पुत्र हुए , पहली पत्नी शर्मिष्ठा से द्रह्यु, अनु , और पुरु और दूसरी पत्नी महारानी देवयानी से यदु और तुर्वसु हुए , ययाति के पुत्रों में से यदु वंश चला , यदु एवं महारानी सुधात्री से पांच पुत्र हुए जिनके नाम सहस्त्रजित , क्रोष्टु , अनल , अजित एवं लघु था , इस्न्मे से आगे चलकर सहस्त्रजित से हैहय वंश चला और क्रोष्टु से यदु वंश के नाम से चला , सहस्त्रजित के पुत्र हुए सतजित और सतजित के टीन पुत्र हुए हाय , हैहय , और वेनुहय ,इनमे से हैहय महाप्रतापी राजा हुए जिनके पुत्र हुए धर्म नेत्र , धर्म नेत्र से कुंती, कुंती से सहंजन, सहंजन से महिष्मान , महिष्मान ने ही महिष्मति की स्थापना की , महिष्मान के पुत्र भद्रसेन हुए , भद्रसेन के पुत्र हुए दुर्दम,दुर्दम के चार पुत्र हुए जिनका नाम कृतवीर्य , कृतवर्मा , कृतग्नि, और कुतौजा था , कृतवीर्य के पुत्र हुए कार्तवीर्यअर्जुन जो की सहस्त्रबाहु व सहस्त्रार्जुन के नाम से प्रसिद्द हुए l सहस्त्रबाहु के पांच पुत्र हुए जिनके नाम थे जयध्वज , शूरसेन , शूर , वृषण,मधु , जयध्वज ने अवंतिका में महाकाल की स्थापना की और शासन किया , सहस्त्रबाहु के पुत्र हुए वीतिहोत्र,तुंडिकेय, भोज और अवन्ती , वीतिहोत्र के दो पुत्र हुए मधु और अनंत , अनंत से दुर्जय , दुर्जय से सुप्रतीक , सुप्रतीक के बाद सिन्धुदेव जिन्हें विष्णु देव के नाम से भी जाना जाता है , विष्णु देव की पीढी में सरीश्रप, शरीश्रप से सुषेण, सुषेण से सुकर्म , सुकर्म से कीर्ति , कीर्ति से कौपंसें , कौपंसें से सुदुम्न , सुद्युम्न को इन्दुनील के नाम से प्रसिद्द हुए , इन्दुनील के चार पुत्र हुए नीलध्वज, हंस ध्वज , मयूर ध्वज , नील ध्वज के पुत्र हुए प्रवीर , प्रवीर की पीढ़ी में ईश्वरदास हुए , ईश्वरदास के पुत्र हुए महाराजा सुबंधु (सन 415 -16 ई०) , महाराजा सुबंधु के पुत्र हुए काकवर्ण (सन 509 ई०), काकवर्ण के पुत्र हुए महाराजा कृष्णराज (सन 550-575 ई०) , यहाँ से कलचुरी वंश की स्थापना महाराजा कृष्णराज के द्वारा की गई l